“हिप सर्विलेंस” कार्यक्रम
स्वास्थ्य विभाग अंतर्गत सेरीब्रल पाल्सी “हिप सर्विलेंस” कार्यक्रम रायपुर जिला मे, मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ मिथिलेश चौधरी के निर्देशन में, रायपुर जिला के आर बी एस के टीम (चिरायु टीम), मेडीकल ऑफिसर, फिजियोथेपिस्ट एवम सामुदायिक हेल्थ ऑफिसर को, सेरीब्रल पाल्सी के सम्बंध में प्रशिक्षित किया गया। प्रशिक्षण डॉक्टर रमन श्रीवास्तव डीकेएस हॉस्पिटल, डॉक्टर सुखदीप कौर दुलायी “यूनिवर्सिटी ऑफ़ अल्बर्टा कनाडा एवम डॉक्टर नमिता श्रीवास्तव के द्वारा दिया गया।
इस अवसर पर जिला कार्यालय से आर बी एस के नोडल अधिकारी डॉ श्वेता सोनवानी, एन एल ई पी सलाहकार डॉक्टर राखी चौहान, आर एम एन सी एच सलाहकार डॉक्टर निकेता पवार, एवम जिला मीडिया प्रभारी गजेन्द्र डोंगरे उपस्थित रहे। मुख्य रूप से इस कार्यक्रम का उद्देश्य समय रहते ऐसे मरीज की खोज करना या पता लगाना है जिससे सेरेब्रल पाल्सी के मरीजों को सही समय पर ईलाज गाईड व काउंसलिंग की जानकारी मिल सके एवम मरीज को इस बीमारी से होने वाली आगामी जटिलताओं से बचाया जा सके।
सेरीब्रेल पाल्सी एक न्यूरोलॉजिकल मोटर डिसोर्डर हैं। जिसमें बच्चे को उठने, बैठने,एवम चलने में दिक्कत होती हैं।1000 जीवित पैदा बच्चों में से 2 या 3 बच्चें इस से प्रभावित मिलते हैं। सबसे ज्यादा कॉम्प्लिकेशन इस मे जो होता हैं वो “हिप ज्वाइंट”( कूल्हे की हड्डी) में ही होता हैं। सेरीब्रल पाल्सी के प्रमुख कारणों में 1. मस्तिष्क में सही तरीक़े से रक्त प्रवाह न होना 2. सर मे चोट लगना 3.प्रसव के वक्त ऑक्सीजन की कमी 4.कुछ इंफेक्शन जैसे मेनिनजाइटिस, या एंसेफिलाइटस (दिमागी बुखार) एवम यह माना जाता है कि सेरेब्रल पाल्सी गर्भावस्था के समय,जन्म के दौरान,जन्म के बाद या बचपन में हो सकती है।
आरबीएसके टीम, मेडीकल ऑफिसर एवम सी एच ओ इस प्रशिक्षण पश्चात पूर्ण रूप से सेरीब्रल पाल्सी के केस को पहचानने में सक्षम हों जायेंगे एवम हिप सर्विलेंस कार्यक्रम में शामिल होकर निश्चित ही ऐसे मरीजों की संख्या में कमी लायेंगे ये ही इस कार्यक्रम का उद्देश्य है।
Source : Anmolnews24.com
RAIPUR ARTHROSCOPY MEET : 2023
विगत 2 जुलाई को रायपुर आर्थोस्कोपिक सोसायटी रायपुर आर्थोपेडिक क्लब एवं हेरिटेज हॉस्पिटल, कचना रायपुर के संयुक्त तत्वावधान में एक दिवसीय अस्थि रोग विशेषज्ञों की छत्तीसगढ़ स्तरीय कार्यशाला आयोजन कोर्टयार्ड बाय मैरियट होटल रायपुर में किया गया । कार्यशाला में घुटने से संबंधित विकारों एवं उसके आधुनिकतम निदान के बारे में बताया गया। देश के विभिन्न शहरों से आएं विशेषज्ञ द्वारा व्याख्यान लिया गया और उसके उपरांत विशिष्ट ऑपरेशनों की आधुनिक शैली का मॉडल पर हैंड ऑन कार्यशाला अयोजित की गई । इस हैंड ऑन कार्यशाला में प्रदेश अस्थि रोग विशेषज्ञों को इन नई विधियों की प्रैक्टिस हड्डी के कृत्रिम मॉडलों से की। कार्यशाला के आयोजक हेरिटेज अस्पताल कचना रायपुर के आर्थ्रोस्कोपिक एवं जोड़ प्रत्यारोपण विशेषज्ञ डॉक्टर अंशू शेखर ने बताया कि आधुनिक जीवन शैली के कारण घुटने के लिगामेंट की चोटें एवं उम्र के पहले घुटने के प्रकरण आजकल बहुधा देखने में आ रहे है। घुटना प्रत्यारोपण करने के पहले इनसे होने वाली तकलीफ को दूर करने के लिए अत्याधुनिक बायोलॉजिक्स इंजेक्शन और ओस्टियोटॉमी जैसे आधुनिक ऑपरेशन किए जा सकते हैं, जिनके परिणाम काम उम्र के लोगों में बहुत उत्साह वर्धक देखने को मिले है।
(Cervical Cancer)
बच्चेदानी के मुंह का कैंसर
बच्चेदानी के मुंह का कैंसर एक प्रकार के वायरस संक्रमण से होता है जिसको ह्यूमन पेपीलोमा वायरस कहते है। यह यौन सम्बन्ध के द्वारा फैलता है। इस कैंसर की जानकारी होने के कारण बच्चेदानी के मुंह के कैंसर की रोकथाम की जा सकती है।
गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर रोकथाम-
भारत में अभी भी 70 प्रतिशत सर्वाइकल कैंसर के मरीज का पता देर से लगता है जब उसमे लक्षण आने लगते है और काफी विकसित हो जाता है। इसलिए, कैंसर की रोकथाम सबसे महत्वपूर्ण चुनौती है,
· प्रथमचरण :- एचपीवी का टीका लगाया जा सकता है।
· दूसरा चरण :- स्क्रीनिंग के द्वारा प्रारंभिक अवस्था में कैंसर का पता लगाया जा सकता है और
· तीसरे चरण :- प्रारंभिक अवस्था में इलाज हो सकता है जिससे कैंसर को रोका जा सकता है ।
WHO ने सर्वाइकल कैंसर के उन्मूलन में तेजी लाने के लिए वैश्विकरणनीति शुरू की ।
1. 90% लड़कियों को 15 वर्ष की आयु तक पूरी तरह से एचपीवी वैक्सीन का टीका लगवाना चाहिए
2. 90% 35 से 45 वर्ष की आयु के बीच महिलाओं की जांच की जानी चाहिए
3. महिलाओं की पहचान की जानी चाहिए और पूर्व कैंसर घावों या आक्रामक कैंसर के लिये उपचार प्राप्त करना चाहिए ।
HPV वैक्सीन गार्डासिल को 9 से 45 वर्ष की आयु के लोगों के लिए HPV के कारण होने वाले सर्वाइकल कैंसर की रोकथाम के लिए अमेरिकी खाद्य एवंऔषधि प्रशासन (FDA) द्वारा अनुमोदित किया गया है। सर्वाइकल कैंसर को रोकने में मदद करने के लिए सभी किशोरों के लिए उनके नियमित टीकों के हिस्से के रूम में एचपीवी टीकाकरण की सिफारिश की जाती है। यह 9 साल की उम्र में शुरू किया जा सकता है। अपने स्वास्थ देखभाल प्रदाता से टीकारण के लिए उपयुक्त कार्यक्रम के बारे में बात करें क्योंकि यह उम्र, लिंग और टीके की उपलब्धता सहित कई कारकों के आधार पर भिन्न हो सकता है। यह टीका हेरिटेज हॉस्पिटल में उपलब्ध है।
सर्वाइकल कैंसर-जांच के नियम (Screening Process)
o 30-64 वर्ष की महिलाओं किसकी करें - सभी को
o कब करें - हर 5 वर्ष में एक बार
o कैसे करें - VIA परीक्षण द्वारा
o कहां करें - सभी PHC व उससे ऊपर के स्वास्थ सेवा केन्द्रों में,
30-65 वर्ष की सभी महिलाओं की हर 5 वर्ष में एक बार गर्भाशय ग्रीवा की जांच VIA परीक्षण द्वारा PHC व उच्च स्वास्थ्य केन्द्र में की जानी चाहिए ।
स्क्रीनिंग का उपयोग कैंसर के संकेतों या लक्षणों के होने से पहले पूर्व कैंसर परिवर्तन या शुरूआती कैंसर का पता लगाने के लिए किया जाता है। वैज्ञानिकों ने विकसित किया है, और विकसित करना जारी रखते हैं, परीक्षण संकेत या लक्ष्ण प्रकट होने से पहले विशिष्ट प्रकार के कैंसर के लिए किसी व्यक्ति की जांच करने के लिए इसका उपयोग किया जा सकता है।कैंसर स्क्रीनिंग के समग्र लक्ष्य हैः
कैंसर स्क्रीनिंग की मूलभूत बातों के बारे में अधिक जाने।
सर्वाइकल कैंसर को रोकने में मदद के लिए लोग जो अतिरिक्त कदम उठा सकते हैं उनमें शामिल हैं :-
o देर से किशोर या बड़े होने तक पहले संभोग में देरी करना
o यौनभागीदारों की संख्या को सीमित करना
o कंडोम का उपयोग करके सुरक्षित यौन संबंध बनाना
o ऐसे लोगों के साथ संभोग से बचना जिन के कई साथी रहे हों
o ऐसे लोगों के साथ संभोग से बचना जो जननांग मस्से से संक्रमित हैं या जिन में अन्य लक्षण दिखाई देते है
o धुम्रपान छोड़ना
सर्वाइकल कैंसर की जांच के लिए निम्नलिखित परीक्षणों और प्रक्रियाओं का उपयोग किया जा सकता है :
1. एलपीवी परीक्षण। यह परीक्षण गर्भाशय ग्रीवा से निकाले गए कोशिकाओं के नमूने पर किया जाता है, वही नमूना पैप परीक्षण के लिए उपयोग किया जाता है।
2. पैपटेस्ट । सर्वाइकल कैंसर का कारण बनने वाली कोशिकाओं में शुरुआती बदलावों के लिए पैप परिक्षण सबसे आम परिक्षण रहा है।इस टेस्ट को पैपस्मीयर भी कहा जाता है। पैप परिक्षण में गर्भाशय ग्रीवा से कोशिकाओं के एक नमूना एकत्र करना शामिल है।
3. एसिटिक एसिड (विआईए) के साथ दृश्य निरीक्षण ।
World Cancer Day :- कैंसर (Cancer) जैसी जानलेवा व घातक बीमारी के प्रति जनजागरूकता फैलाने के मकसद से हर साल 4 फरवरी को वर्ल्ड कैंसर डे यानी विश्व कैंसर दिवस (World Cancer Day) मनाया जाता है. इस दिवस को मनाने की शुरुआत साल 1933 से हुई थी. दरअसल, विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation) की पहल पर साल 1933 में पहला कैंसर दिवस जिनेवा, स्विटजरलैंड में मनाया गया था, तब से यह सिलसिला बरकरार है. हालांकि हर साल इसे नई थीम के अनुसार मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य आम लोगों में कैंसर के खतरों, लक्षणों और बचाव को लेकर जागरूकता पैदा की जा सके. आज भी कई लोगों को यह गलतफहमी है कि कैंसर छूने से भी फैल सकता है, इसलिए लोग कैंसर रोगियों से अच्छा व्यवहार नहीं करते हैं, जबकि यह धारणा बिल्कुल भी गलत है.
विश्व कैंसर दिवस पर दुनिया भर में इस गंभीर बीमारी के प्रति लोगों को जागरूक करने के मकसद से कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं
कुष्ठ रोग या कोढ़ एक क्रोनिक बीमारी या संक्रमण है जो कि जीवाणु माइकोबैक्टीरियम लेप्री के कारण से होता है। यह मुख्य रूप से हाथ-पांव, त्वचा, नाक की परत और ऊपरी श्वसन पथ की नसों को प्रभावित करता है। कुष्ठ रोग को हैनसेन रोग के नाम से भी जाना जाता है। कुष्ठ रोग त्वचा के अल्सर, तंत्रिका क्षति और मांसपेशियों में कमजोरी पैदा करता है। यदि इसका समय पर और उचित इलाज नहीं किया जाए तो इसकी वजह से पीड़ित को गंभीर विकृति और विकलांगता का सामना करना पड़ सकता है।
कोढ़ की बीमारी अति पिछड़े और विकाशील देशों में बहुत आम है। लेकिन यह बीमारी सबसे ज्यादा उष्णकटिबंधीय या उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में रहने वाले लोगों में सबसे आम है। माइकोबैक्टीरियम लेप्रे नामक बैक्टीरिया बहुत धीरे-धीरे बढ़ते हैं और आसानी से नहीं फैलते हैं।
हेरिटेज हॉस्पिटल में छत्तीसगढ़ में पहली बार अत्याधुनिक ऑक्सीनियम इम्प्लांट्स से जोड़ प्रत्यारोपण
हेरिटेज हॉस्पिटल, रायपुर में राज्य में पहली बार ऑक्सीनियम इम्प्लांट लगाकर घुटना और कुल्हा प्रत्यारोपण डॉ अंशु शेखर द्वारा किया गया है। कूल्हे का प्रत्यआरोपण एक ३२ वर्षीय पुरुष, श्री नवीन श्रीवास में किया गया जिनका जोड़ एक्सीडेंट में चोट लगने की वजह से खराब हो गया था। ऑपरेशन की बाद अब उन्हें दर्द से पूरी राहत मिल गयी है। घुटने का प्रत्यारोपण एक ६४ वर्षीय महिला डॉक्टर में किया गया जिन्हे दर्द की वजह से अपने मरीज़ देखने और ऑपरेशन करने में दिक्कत होती थी। वे भी अब दर्द से मुक्त हैं और अपने सभी कार्य कुशलता से कर रही हैं। इन दोनों मरीज़ों में जटिलताएं थी इनकी कम आयु और जोड़ प्रत्यारोपण के बाद ज़्यादा गतिविधि की आवश्यकता। अत्याधुनिक तकनीक वाले ऑक्सीनियम इम्प्लांट से इन दोनों मरीज़ों को फ़ायदा मिला।
हेरिटेज हॉस्पिटल के जॉइंट रिप्लेसमेंट सर्जन, डॉ अंशु शेखर के अनुसार आम तौर पर इस्तेमाल किये जाने वाले इम्प्लांट्स के मुकाबले ऑक्सीनियम इम्प्लांट्स के कई फायदे हैं। प्रयोगशाला के अध्ययन में यह पाया गया है की ऑक्सीनियम का घिसाव बहुत धीरे होता है। परिणाम स्वरुप प्रत्यारोपण के पश्चात सामान्य इम्प्लांट्स जहां १५-२० साल में घिस जाते हैं, वहीँ ऑक्सीनियम लगभग ३५ वर्षों तक टिक सकता है। इसके अलावा सामान्य कोबाल्ट-क्रोमियम इम्प्लांट्स के मुकाबले, ऑक्सीनियम ज़्यादा बायोकम्पैटिबल है, अर्थात इससे शरीर में रिएक्शन की सम्भावना बहुत कम है। यह तकनीक अमेरिका में पिछले दस वर्षों से इस्तेमाल की जा रही है और इसके क्लीनिकल परिणाम बहुत अच्छे है।
डॉ अंशु शेखर का कहना है कि बढ़ते मोटापे और सुस्त जीवनशैली की वजह से अब गठिया रोग कम उम्र के लोगों को ग्रसित कर रहा है। इसके अतिरिक्त ऑपरेशन के पश्चात मरीज़ों कि अपेक्षा भी बढ़ गयी है। ऑक्सीनियम इम्प्लांट में घिसाव बहुत कम होने कि वजह से इसे कम उम्र के मरीज़ों में लगाया जा सकता है। घुटना प्रत्यारोपण के लिए जहां सामान्य कोबाल्ट-क्रोमियम इम्प्लांट्स का उपयोग ६५ वर्ष से कम उम्र के मरीज़ों में परिसीमित है, वहीँ ऑक्सीनियम के लिए ऐसी कोई सीमा नहीं है। हमारे राज्य में सिकलिंग एक आम बीमारी है और इसमें कम आयु में ही कूल्हे खराब हो जाते है। ऐसे तरुण मरीज़ों का कुल्हा प्रत्यारोपण भी ऑक्सीनियम इम्प्लांट द्वारा बहुत सफलता से किया जा सकता है।
जो मरीज़ घुटना या कुल्हा प्रत्यारोपण के पश्चात साइकिलिंग, जॉगिंग या जिम में व्यायाम करना चाहते हों, उनके लिए भी ये एक उत्तम विकल्प है। घिसाव कि दर कम एवं ज़्यादा ठोस होने कि वजह से ऑक्सीनियम इम्प्लांट ऑपरेशन के बाद शारीरिक सक्रियता में प्रतिबन्ध की आवश्यकता नहीं होती है। इसके आलावा जिन मरीज़ों को मेटल एलर्जी हो (जैसे कृत्रिम आभूषणों से), उनमे भी ऑक्सीनियम इम्प्लांट का उपयोग किया जा सकता है क्योंकि इसमें निकेल नहीं होता। हेरिटेज हॉस्पिटल में इस सुविधा और तकनीक के उपलब्ध होने के पश्चात अब ऐसे मरीज़ जिन्हे कम उम्र में या ज़्यादा टिकाऊ जोड़ प्रत्यारोपण की आवश्यकता हो, उन्हें लाभ मिलेग। ये छत्तीसगढ़ राज्य के विकासशील स्वास्थ सेवा का एक उत्तीर्ण उदाहरण है।
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें हेरिटेज हॉस्पिटल, कचना, रायपुर (8717870920)
Brain surgery is a complex medical procedure aimed at diagnosing, treating, or repairing abnormalities in the brain. It can be life-saving and dramatically improve a patient’s quality of life. Thanks to advances in medical technology, brain surgeries today are safer, more precise, and involve quicker recovery times. In this guide, we’ll explore what brain surgery is, why it's performed, and the different types of brain surgery commonly used.
What Is Brain Surgery?
Brain surgery, also known as neurosurgery, involves any surgical intervention within the brain, skull, or nearby structures like blood vessels and nerves. It may be required to remove tumors, repair damaged areas, treat neurological disorders, or relieve pressure caused by injuries or bleeding.
Why Is Brain Surgery Performed?
Brain surgery may be necessary for various reasons, including:
Types of Brain Surgery / Neurosurgery
There are several types of brain surgery, each tailored to the nature of the condition:
1. Craniotomy
A craniotomy is the most common form of brain surgery. During this procedure, a portion of the skull is temporarily removed to access the brain. Surgeons use craniotomy to remove tumors, repair aneurysms, or remove blood clots.
Main Highlights :
Also known as minimally invasive brain surgery, endoscopic techniques use small incisions and a tiny camera (endoscope) to reach the brain. It’s often used to treat tumors, cysts, and hydrocephalus.
Benefits include:
3. Deep Brain Stimulation (DBS)
Deep Brain Stimulation involves implanting electrodes into specific brain regions. A small device, like a pacemaker, sends electrical impulses to regulate abnormal brain activity. DBS is often used for Parkinson’s disease, epilepsy, and other neurological disorders.
Highlights:
4. Stereotactic Radiosurgery
Despite the name, stereotactic radiosurgery is a non-invasive technique that uses targeted radiation beams to treat brain tumors, arteriovenous malformations (AVMs), and other abnormalities without opening the skull.
Advantages:
5. Brain Biopsy
A brain biopsy involves removing a small piece of brain tissue to diagnose conditions like brain cancer, infections, or inflammatory diseases. It can be performed as an open surgery or using minimally invasive techniques.
Quick facts:
Risks and Recovery from Brain Surgery
Like any major surgery, brain procedures come with risks such as infection, bleeding, memory issues, or neurological deficits. However, advancements in surgical methods and postoperative care have significantly improved outcomes.
Recovery :
Recovery time varies depending on the type of surgery and the patient's overall health, but many people return to normal activities within weeks to months.